
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के औपचारिक ऐलान के साथ ही जिस तरह ओबीसी के तमाम नेता बीजेपी छोड़कर जा रहे हैं, उससे पार्टी नेतृत्व की चिंता बढ़ गई है. ऐसे बीजेपी के सहयोगी दल निषाद पार्टी और अपना दल (एस) की गठबंधन में सियासी अहमियत और बार्गेनिंग पोजिशन बढ़ गई है, क्योंकि इन दोनों दलों का आधार भी ओबीसी समुदाय के बीच है. यही वजह है कि बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने दोनों ही सहयोगी दलों के साथ बैठक कर सीट बंटवारे पर मंथन किया.
बीजेपी ने अपने दोनों सहयोगी दलों से गठबंधन में रहने का भरोसा मांगा. इसकी वजह यह चर्चा थी कि अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के नेता पार्टी के नेता भी समाजवादी पार्टी में जा सकते हैं. इसीलिए बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व सक्रिय होकर डैमेज कन्ट्रोल करने में जुट गया है.
बीजेपी छोड़ने वाले दोनों ही ओबीसी नेताओं ने दलित, पिछड़ों, वंचितों के साथ भेदभाव करने का योगी सरकार पर आरोप लगाया है. ऐसे में बीजेपी के सामने अपने उस सोशल इंजीनियरिंग को बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है, जिसके बूते उसे 2017 के चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत हासिल हुआ था. कद्दावर पिछले नेताओं को छोड़ने के बाद अब बीजेपी के सहयोगियों ने बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है. अनुप्रिया पटेल ने 36 सीटों की मांग बीजेपी से की है, जिसमे पूर्वांचल के अलावा अवध बुंदेलखंड और कानपुर क्षेत्र में भी सीटें शामिल हैं.
2017 में जब अमित शाह ने गठबंधन बनाया था तब अपना दल ने 17 सीटों की मांग रखी थी, लेकिन सीट शेयरिंग में अपना दल को बीजेपी ने 11 सीटें दी थी. ऐसे में अपना दल का स्ट्राइक रेट सबसे ज्यादा था, वो 11 सीटों में 9 सीट जीत कर आई थी
इस बार अपना दल की मांग 3 गुने से भी ज्यादा है. अपना दल (एस) को लगता है कि कम से कम 2 दर्जन सीटों पर उनका मजबूत दावा है.
अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल ने कहा था कि स्वामी प्रसाद मौर्य का बीजेपी और एनडीए से जाना दुखद है. पटेल ने कहा कि ‘बीजेपी को ओबीसी नेताओ के आत्मसम्मान का ध्यान रखना चाहिए और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पूरे मामले को अपने हाथ में लें.’